बिलासपुर
मिशन हॉस्पिटल मामले में हाईकोर्ट ने शासन के पक्ष में बड़ा से फैसला सुनाया है. मामले में सुनवाई के बाद 24 अप्रैल 2025 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. कोर्ट ने आज फैसला सुनाते हुए याचिका को खारिज कर दिया है.
1885 में लीज पर मिली थी 11 एकड़ जमीन
दरअसल, मिशन अस्पताल की स्थापना वर्ष 1885 में हुई थी. मिशन अस्पताल के लिए सेवा के नाम से 11 एकड़ जमीन लीज पर दी गई थी. इसके लिए क्रिश्चियन वुमन बोर्ड ऑफ मिशन हॉस्पिटल बिलासपुर, तहसील व जिला बिलासपुर छत्तीसगढ़ को जमीन आवंटित की थी. यह मोहल्ला चांटापारा शीट नंबर 17, प्लाट नंबर 20/1 एवं रकबा 382711 एवं 40500 वर्गफीट है. 1966 में लीज का नवीनीकरण कर साल 1994 तक लीज बढ़ाई गई थी. जिसकी अवधि 31 अप्रैल 1994 तक के लिए थी. जिसमें मुख्य रूप से निर्माण में बदलाव एवं व्यवसायिक गतिविधियां बिना कलेक्टर की अनुमति के न किए जाने की शर्त थी.
डायरेक्टर का कारनामा, शर्तों के विरुद्ध बनाई चौपाटी
लीज पर जमीन लेकर डायरेक्टर रमन जोगी ने इसे चौपाटी बनाकर किराए पर चढ़ा दिया था. एक रेस्टोरेंट का कैम्पस में संचालन किया जा रहा था. लीज की शर्तों का उल्लंघन कर व्यावसायिक उपयोग करने पर तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण की नजर पड़ी. लीज की अवधि बढ़ाने के समय इसमें कई शर्तें भी लागू की गई थी. पर शर्तों का उल्लंघन कर न केवल इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा था. साथ ही किराए पर अन्य प्रतिष्ठानों को देकर इसे कमाई का माध्यम बना लिया गया था. 1994 को लीज खत्म होने के बाद 30 वर्षों तक लीज का नवीनीकरण नहीं करवाया गया था.
मामले की सुनवाई के दौरान राज्य शासन की ओर से पैरवी कर रहे महाधिवक्ता ने कहा था कि नितिन लॉरेंस प्रत्येक याचिका में अपना पद बदल रहे हैं और विभिन्न संस्थाओं की पॉवर ऑफ अटॉर्नी प्रस्तुत कर रहे है. अदालत को गुमराह किया जा रहा है. यह कानूनी रूप से गलत है.
जस्टिस प्रसाद ने अपने फैसले में लिखा है कि अधिकारियों ने पट्टे को नवीनीकृत करने से इनकार करके और पट्टे को वापस लेने में अपने अधिकारों और अधिकार क्षेत्र के भीतर काम किया. भूमि पर पुनः कब्ज़ा प्राप्त करने के लिए कदम उठाएँ. उनके निर्णय में कोई त्रुटि या अवैधता नहीं है, जिसके लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 या 227 के अंतर्गत इस न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप की आवश्यकता हो.