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आर्थिक सर्वे में बड़ा संकेत, 2030 तक हर साल 78.5 लाख नई नौकरियों की जरूरत

देश के इकोनॉमिक सर्वे में कई तरह के सुझाव दिए गए हैं. जो देश इकोनॉमी को बढ़ाने में काफी कारगर साजबित हो सकते हैं. जिसमे सबसे अहम सुझाव नौकरी जेनरेट करने को लेकर है. इकोनॉमिक सर्वे में सुझाव दिया गया है कि भारत को 2030 तक सालाना 78.5 लाख नए नॉन फार्म जॉब क्रिएट करने की जरूरत है. साथ ही 100 फीसदी हासिल करने, हमारे शिक्षा संस्थानों की क्वालिटी में सुधार करने और भविष्य के लिए तैयार बुनियादी ढांचे का तैयार करने की जरूरत है. वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया है, वर्कफोर्स की महत्वाकांक्षाएं और आकांक्षाएं देश के डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठाने और एग्री से नॉन एग्री जॉब्स तक संरचनात्मक परिवर्तन में तेजी लाने के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की आवश्यकता है.

युवाओं को प्रोडक्टिव बनाना जरूरी
सर्वे के अनुसार विकास और समृद्धि के बीच महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में, किसी भी इकोनॉमी में रोजगार की मात्रा और गुणवत्ता यह निर्धारित करती है कि आर्थिक विकास जनता तक कैसे पहुंचता है. 10-24 वर्ष की आयु वर्ग की लगभग 26 फीसदी आबादी के साथ, भारत टॉप पर है. सर्वे में कहा गया है कि भारत ग्लोबल लेवल पर सबसे . युवा देशों में से एक है. भारत की आर्थिक सफलता इस बात निर्भर करेगी कि वह अपने युवा वर्क फोर्स को कितना प्रोडक्टिव बन पाती है. इको सर्वे में कहा गया है कि डेमो​ग्राफिक डिविडेंड का पूरी तरह से लाभ उठाने के लिए क्वालिटी वाली नौकरियां पैदा करना महत्वपूर्ण है.

इसके अलावा, रीस्किलिंग, अपस्किलिंग और नई-स्किलिंग को प्राथमिकता देकर, सरकार का लक्ष्य वर्कफोर्स को ग्लोबल डिमांड के साथ जोड़ना है, जिससे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय रोजगार क्षमता में वृद्धि होगी. सर्वे के अनुसार, कंप्लायंस को सरल बनाना, लेबर फ्लेक्सीबिलिटी को बढ़ावा देना और श्रमिकों के कल्याण को मजबूत करना स्थायी नौकरी वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है. सर्वे में कहा गया है कि रेगुलेशन के माध्यम से व्यवसाय करने की निश्चित लागत कम करने से उद्यमों के लिए अधिक नियुक्तियां करने की गुंजाइश बनेगी.

डेमोग्राफिक डिविडेंड ना बन जाए डिजास्टर
बेरोजगारी की संभावित चिंता एशिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी पर भारी पड़ रही है. देश की इकोनॉमिक ग्रोथ चार साल में सबसे कम देखने को मिल सकती है. जिसकी वजह से देश की आर्थिक गति में दरारें उजागर हो सकती हैं. अर्थशास्त्रियों के अनुसार, बेरोजगारी से निपटने के लिए सरकार दीर्घकालिक रणनीतियां ही बनानी होंगी. उसके बिना भारत का ये डेमोग्राफिक डिविडेंड डेमोग्राफिक डिजास्टर में बदल सकता है. यह बजट न केवल 2025 के लिए दिशा तय करेगा बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार के अगले चार वर्षों के लिए इकोनॉमिक ट्रैजेक्ट्री भी निर्धारित करेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, कल पेश होने वाले केंद्रीय बजट में नौकरियों पर ज्यादा फोकस देखने को मिलेगा.

कितनी रह सकती है 2025 की जीडीपी
इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार मजबूत बुनियाद, सूझ-बूझ वाली राजकोषीय मजबूती का खाका और निजी खपत बने रहने के साथ देश की आर्थिक वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष 2025-26 में 6.3 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है. चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर चार साल के निचले स्तर 6.4 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है. वैसे भारत की इकोनॉमी दुनिया के कई देशों से आगे है, लेकिन धीमी गति के हालिया संकेतों ने इसकी ट्रैजेक्ट्री को लेकर काफी चिंताएं बढ़ा दी हैं।

जुलाई-सितंबर तिमाही में विकास दर घटकर 5.4 प्रतिशत रह गई, जो सात तिमाहियों में सबसे कम है, जिससे देश की बेरोजगारी चुनौतियों के समाधान के बारे में संदेह गहरा गया है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अपने विकास पूर्वानुमान को 7.2 प्रतिशत से संशोधित कर 6.6 प्रतिशत कर दिया. वहीं फ्रेश आंकड़े चिंता में और ज्यादा इजाफा कर रहे हैं. सरकार द्वारा जारी पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, भारत की जीडीपी वित्त वर्ष 2024-25 में 6.4 फीसदी बढ़ने का अनुमान है – जो चार साल का निचला स्तर है, जबकि वित्त वर्ष 24 में देश की ग्रोथ 8.2 फीसदी देखने को मिली थी.

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