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‘महिलाओं को नहीं रख सकते बाहर, आप करें वरना हम…’, स्थायी कमीशन पर सुप्रीम कोर्ट की सरकार को फटकार…

महिला तटरक्षक अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई।

अदालत ने अल्टीमेटम देते हुए आज कहा कि महिलाओं को छोड़ा नहीं जा सकता है और अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो हम कर देंगे।

इस मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का पक्ष अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी रखा। उन्होंने बताया कि तटरक्षक बल का काम सेना और नौसेना से अलग है।

फिलहाल इसमें संरचनात्मक परिवर्तन किया जा रहा है। भारतीय तटरक्षक बल की ओर से बोर्ड स्थापित किया गया है। इस पर SC ने कहा कि कार्यक्षमता जैसे तर्क 2024 में मायने नहीं रखते है। महिलाओं को छोड़ा नहीं जा सकता है। आपके बोर्ड में महिलाएं भी होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने नौसेना की रिटायर्ड महिला अधिकारी को स्थायी सेवा कमीशन देने के लिए उसकी पात्रता पर विचार करने की खातिर नेवी को नया चयन बोर्ड बनाने का निर्देश दिया।

शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्ति का प्रयोग किया, जो उसे उसके समक्ष लंबित देशभर के किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी डिक्री या आदेश पारित करने का अधिकार देता है।

अदालत ने मामले को सुनवाई  के लिए शुक्रवार को सूचीबद्ध किया है। 

कमोडोर सीमा चौधरी की याचिका पर सुनवाई
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की विशेष पीठ ने हरियाणा के अंबाला की रहने वाली कमोडोर सीमा चौधरी की याचिका पर सुनवाई की।

याचिका में कहा गया है कि उन्हें गलत तरीके से भारतीय नौसेना में स्थायी कमीशन से वंचित कर दिया गया। चौधरी वर्ष 2007 से शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारी के रूप में भारतीय नौसेना की कानूनी शाखा जज एडवोकेट जनरल विभाग में काम कर रही थीं। 5 अगस्त, 2022 को उन्हें सेवा से मुक्त कर दिया गया था।

SC ने नौसेना से एक चयन बोर्ड गठित करने को कहा है। यह बोर्ड 15 अप्रैल को या उससे पहले किसी भी न्यायिक या अर्ध-न्यायिक कार्यवाही में की गई टिप्पणी से प्रभावित हुए बिना स्थायी कमीशन देने के मामले पर विचार करेगा।

पीठ ने कहा कि स्थायी कमीशन देने के लिए उनकी याचिका की जांच करते समय अधिकारी की किसी भी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट पर विचार नहीं किया जाएगा।

पीठ ने कहा कि अगर अधिकारी स्थायी कमीशन देने से जुड़ी याचिका से संबंधित मामले में बाद के आदेश से व्यथित हैं तो वह कानूनी उपाय ढूंढ़ सकती हैं।

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